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________________ तृतीय खण्ड ग्राठ प्रथम सुइ गृह करे दुतीय कुसम जल वरसी जी । तीजी आरीसो धरै नहवरावै वलि हरसी जो ॥ हरख धरती कलस हाथें गाय जिन गुरण मंगली । पच्छिम रुचक नी दिसा कुमरी वाय वाजे मन रली || उत्तर रुचक नी आठ कुमरी वोंजे चामर मंडली । रुचक कूरण नी च्यार कुमरी हाथ दीवी ले वली ॥५॥ रुचक ईसान चउ सुंदरी गावै जिन गुण रंगे जी । नाल वधारे प्रेम सु करे मरिण पीठ अंगे जी ॥ उछाह भरते रमक झमके चमकती जिम वीजली । त्रिहुं लोक तारक चरण वंदे करे वलि वलि अंजली ॥ ग्रम्ह देव शकति थई लेखे जेह तुझ भगते मिली । करि केलि मंदिर चिरंजीवो कही बांधे पोटली ||६|| अज्ञान निवारण तु धरणी, मिथ्या तिमर निवारी जी । तृसना' ताप समाइबा, प्रभु समता समधारी ॥ तुह भारण रंगी मुनी प्रसंगी शुद्ध समता आदरे । इंद्र चंद्र नरेन्द्र पमुहा सेवना ईहा करें ॥ तुझ भगति रागी सुमति जागी पाय लागी जय करें । देवचंद्र श्री जिनचंद्र सेवा करत लीला विस्तरै ||७|| | निश्म मरिण विनय जीवन जैन लायब्रेरी नं. ८१४ म० से उद्धृत ] १ - मिध्यात्वरूपी अंधकार Jain Educationa International २ - तृष्णा के ताप को शान्त करने के लिये For Personal and Private Use Only [ ce www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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