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श्रीमद् देवचन्द्र पछ पीयूष
सिद्धाचल स्तुति विमलाचल मंडण जिनवर आदि जिणंद । निरमम निरमोही केवल ज्ञान दिणंद ॥ जे पूर्व नवाणु वार धरी आणंद । सेक्रुज ने शिखरे समवसरया सुख कंद ।।१।। इण चोविसी मां ऋषभादिक जिनराय । वलि (काल) प्रतीतें अनंत चौवीसी थाय ॥ ते सवि इण गिरि वर आवी फरसी जाय । एम भावी कालें आवसइ सवि मुनिराय ॥२॥ श्री ऋषभ ना गणधर पुंडरीक गुणवंत । द्वादश अंग रचना कीधी जेण महत। ॥ सवि आगम माहे सेत्रुज महिमा वंत । भाखी जिन गणधर सेवो करी थिर चित्त ।।३।। चक्केसरि गोमुह कवड़ पमुह सुर सार । जसु सेवा कारण थापइ इंद्र उदार ॥ देवचंद्र गणि भाषइ भविजन में आधार । सवि तीरथ मांहि सिद्धाचल सिरदार ॥४॥
इति सिद्धाचल स्तुति संपूर्ण
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