SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ | सुत्र' ग्ररथ धारी - परण मुनिवर, विचरे देश विहारी । जिन कल्याणक थानक देखी, पछी थाय पद धारी || भेट्यो||८|| श्रीमद् देवचन्द्र पथ पीयूष श्री सुप्रतिष्ठ सम्मेत सिखरनी, ठरणा करी जे सेवे । श्री शुकराज परे तीरथ फल, इहाँ बैठा पर लेवे || भेट्यो || || O तसु आकार अभिप्राय तेहने, ते बुद्धे तसु करणी | करतां ठवरणां शिव फल प्रापे, एम ग्रागमे वरणी || भेट्यो० ॥ १०॥ जिण ए तीरथ विधि सु भेठयो, ते तो जग सलहीजे । ते ठवरणा भेंट मे परण, नर भव लाहो लीजे || भेट्यो० ॥ ११ ॥ । दश क्षेत्रे एक एक चौबीसी, बीस जिनेसर सी सिद्ध क्षेत्र बहु जिन नो देखी, महारो मनड़ो री || भेट्यो ० ।। १२ ।। दीपचन्द पाठक नो विनयी, देवचन्द्र इम भासे । जे जिन भक्त लीना भविजन, तेहने शिव सुख पासे || भेट्यो ० ||१३|| १ - सूत्रार्थ को अच्छी तरह जानने वाले मुनि भी देश विदेश में विचरण करते हुए जिनेश्वर भगवन्तों की कल्याणक भूमि की स्पर्शना कर लेने के पश्चात् प्राचार्य पदधारी बनते हैं । २- जगत् में प्रशंसनीय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy