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प्रथम खण्ड
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एक वचन श्री वीरनो रे हां, का भवनी कोड़ि मे०, अविनाशी सुख प्रापवारे हां, कोण करें तुझ होडि मे० ॥३॥ तुझ सरिखा साहिब छतेरे हां, करता मोटी हूस मे०, मोह महारिपु जीप ने रे हां, करस्यां कर्म नो ध्वंस मे० ।।४।। मोहाधीन जे जीबड़ा रे हां, तृसना ता तप्त मे०, पुद्गल पास्या बंधीया रे हां, विषया रस संलिप्त मे० ।।५।। तनु विभाग रंगी दुखी रे हां, श्रावृत आतम शक्ति मे०, तेहवा ने कुण तारिस्य रे हां, देखाड़ी गुण व्यक्ति मे० ॥६॥ बहु परचित परभावना रे हां, चपल एकत्त्व ऊपाय । मे० । करतां कहि कुण वारस्य रे हां, ते देखाड़ो वाय'।मे०॥७॥ विषयादिक आसेवतां रे हां, था तो अम्ह संकोच । मे० । तुझ उपगारे ते हिवें रे हां, थास्य किमते सोच ।।मे०॥८॥ वीर चरण जावो अछेरे हां, सुणदा अमृत वाणि । मे० । ते मात्रै सुर भोगतो रे हां, करता नवि मंडारण ।मे।।६।। कृपा करो इक वचन नी रे हां, यद्यपि छौ वीतराग । मे० । महा मोहना कष्ट थी रे हां, छोडावौ महाभाग ।।मे०।१०।। भरत खेत्र ना जीव ने रे हां, तुझ विण कुण रखवाल । मे० । दूषम काल कृतांत मां रे हां, एहनो कवरण हवाल ॥मे०।।११।।
प्राय, ठाय
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