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________________ २६ ] श्री पार्श्वनाथ स्तवन (शी कहुं कथनी मारी "राज ए चाल) मुझने दास गणीजे राज पार्श्वजी ! अरज सुणीजे । अवसर' आज पूरीजे राज, पार्श्वजी अरज सुणीजे ॥ प्रकरणी || वामानंदन तु आनंदन, चन्दन शीतल भावे / दुःख निकंदन गुणे अनिंदन, कीजे वंदन भावे राज | पार्श्वजी० ॥ १ ॥ तु हीज स्वामी अन्तरजामी, मुझ मन नो विसरामी । शिव गतिगामी तु निक्कामी, बीजा देव विरामी राज । पार्श्वजी० ॥ २ मूरति तारी मोहनगारी, प्राण थकी पण प्यारी । हुं बलिहारी वार हजारी, मुभने प्राश तुम्हारी राज | पार्श्वजी ॥ ३ ॥ जे एकतारी करे तारी ( ? ), प्रीति विचारी सेवक सारी, दीजे श्रीमद्देवचन्द्र पद्य पीयू लीजे. तेहने तारी । केमं विसारी राज । पार्श्वजी ॥ ४ ॥ विघन विडारी स्वामी संभारी, प्रीति खरी में धारी । शंक निवारी भाव वधारी, वारी तुझ चरणां री राज | पार्श्वजी || शा Jain Educationa International मिलि नर नारी बहु परिवारी, पूज रचे तुझ सारी ।. देवचंद्र साहिब सुखदाई, पूरो प्राण हमारी राज | पार्श्वजी० ॥ ६ ॥ १ - प्राज समय है अतः प्रभो मेरी आशा पूरण करो । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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