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श्री पार्श्वनाथ स्तवन
(शी कहुं कथनी मारी
"राज ए चाल)
मुझने दास गणीजे राज पार्श्वजी ! अरज सुणीजे । अवसर' आज पूरीजे राज, पार्श्वजी अरज सुणीजे ॥ प्रकरणी || वामानंदन तु आनंदन, चन्दन शीतल भावे
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दुःख निकंदन गुणे अनिंदन, कीजे वंदन भावे राज | पार्श्वजी० ॥ १ ॥
तु हीज स्वामी अन्तरजामी, मुझ मन नो विसरामी । शिव गतिगामी तु निक्कामी, बीजा देव विरामी राज । पार्श्वजी० ॥ २
मूरति तारी मोहनगारी, प्राण थकी पण प्यारी । हुं बलिहारी वार हजारी, मुभने प्राश तुम्हारी राज | पार्श्वजी ॥ ३ ॥
जे एकतारी करे तारी ( ? ), प्रीति विचारी सेवक सारी, दीजे
श्रीमद्देवचन्द्र पद्य पीयू
लीजे. तेहने तारी । केमं विसारी राज । पार्श्वजी ॥ ४ ॥
विघन विडारी स्वामी संभारी, प्रीति खरी में धारी । शंक निवारी भाव वधारी, वारी तुझ चरणां री राज | पार्श्वजी || शा
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मिलि नर नारी बहु परिवारी, पूज रचे तुझ सारी ।. देवचंद्र साहिब सुखदाई, पूरो प्राण हमारी राज | पार्श्वजी० ॥ ६ ॥
१ - प्राज समय है अतः प्रभो मेरी आशा पूरण करो ।
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