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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयू
श्री धर्मनाथ स्तवन
राग- सारंग
हम इश्की' जिन गुण गान के (२) पुद्गत्न' रुचिसु विरसी रसीले, अनुभव अमृत पान के हम.।।१।। के इश्की वनिता' ममता के, के इश्की धन - धान के । हमतो लायक समता नायक, प्रभु गुण अनंत 'खजान के ।हम.।।२।। केइक रागी हैं. निज तन, के, के प्रशनादिक खान के। के चिंतामणि सुरतरू इच्छक, केइ पारस पाहान के हम ।।३।। चिदानंद धन परम अरूपी, अविनाशी अम्लान के । हम लयलीन पीन हैं ग्रहनिशि, तत्त्व रसिक के तान के हम.।।४।। धर्मनाथ प्रभु धर्म धुरंधर, केवल ज्ञान निधान के । चरण शरण ते जगत शरण है, परमातम जग भान के ।हम.।।५।। भीति गई प्रगटी सब संपत्ति, अभिलाषी जिन आण के। देवचंद्र प्रभु नाथ कियो, अब, तारण तरण पिछान के हम.॥६॥
१-प्रेमी............२-पुद्गल के प्रेम से विरक्त होकर ३-स्त्री ४-पारस पत्थर
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