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खण्ड
तीजउ रोग निमित्त, मन मई चित्त धरइ री। चउथउ सुख नइ काजि, जीव नियाण करइ री ।।६।। यक्ष दैत्य विष साप, जल थल जीव सहू री । सायण डायण भूत, गाजै सींह बहू री ॥७॥ नयडइ ' आव्यइ दुःख, जे मन क्रोध करइ री। टालु दूरइ एह, मन मई एम धरइ री ।।८।। एहवउ दुष्ट स्वभाव, जिण रइ चित्त रहइ री। आर्त अनिष्ट संयोग, जिनवर तेथि कहइ री ।।६।। भोग सुहाग' विशेष, चित्त वंछित सुह दाता । बांधव मित्र कलत्र, ऋद्धि पितृ वली माता ॥१०॥ हुयइ इष्ट वियोग, एहवउ ध्यान भिलइ री। करूं कोइ उपाय, जिण सुइष्ट मिलइ री ॥११॥ इष्ट मिलेवा काज, मन संकल्प वहइ री । ध्यान ए इष्ट वियोग, बीजउ आर्त कहइ री ।।१२।। कास श्वास ज्वर दाह, जरा भगंदर रोगा । पित्त श्लेश्म अतिसार, कोष्टा दिक ना योगा ॥१३॥ एहवइ उपनइ रोग, मन मइं चिंत करइ री । औषध करइ अपार, सुख कारण विचरइ री ॥१४॥
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किसी भी तरह का दु.ख नजदीक आने पर २-सौभाग्य
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