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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
ध्यान चतुष्क विचार गर्भित श्री शीतल जिन स्तवन दुहा- प्रणमी शीतलनाथ पय, सुख सम्पतिः दातार ।।
विधन विडारन भय हरणं, धरि मनि भाव अपार ॥॥ श्री सद्गरू ना पय नमी, मन सुकरीय विचार। ध्यान' भेद संखेप सु, कहिसु मति अनुसार ॥२॥
ढाल १ रामचंद कइ वाग, एहनी। चार ध्यान विसतार, सुणिज्यो भाव धरी री। कहिस्यु श्रुत अतुसार, अहि मनि टेक खरी री ॥१॥ आर्त रौद्र वलि धर्म, चउथउ शुकल थुण्यउ री।" कहिस्यु मति इक चित्त, जिम गुरू पास सुण्यउ री ॥३॥ संका मोह प्रमाद, कलह विज्ञ भय कारी । । भ्रम उन्माद विशेष, धन संग्रह अधिकारी ॥३॥ काम भोग नी चींत जे जन मन. मई रांखइ। . . आर्त ध्यान तिण मांहि, लहीयइ इम श्रुत साथइ. ॥४॥
प्रथम ध्यान ना पाय, च्शार कह्या श्रत संगइ। प्रथम अनिष्ट संयोग, बीजउ इष्ट वियोगइ ॥५॥
१- ध्यान के भेदों को बताते हुए।
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