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________________ आदान भंड निक्षेपणा ‘समितिकी बाधक भाव अद्वेष पणे तजे, साधक ले गत राग । पूर्व गुण रक्षक पोषक पणे, नीपजते शिव माग-१३ स० शब्दार्थ...अद्वष पणे द्वष रहित सद् बुद्धि से। गत राग=मोह बिना। पूर्वगुण=पहले प्राप्त किये हुये सम्यक्तव आदि गुण । नीपजते प्राप्त होते । ___ भावार्थ...जो उपकरण संयम मार्ग में बाधक बनते दीख, उन्हें अद्वष भावना से शीघ्र त्याग दे। अजीव पदार्थों पर भी यदि द्वष हो जाय तो अजीव प्राद्वेषिकी क्रिया लग जाती है। जो उपकरण साधक बनते हों, उन्हें राग रहित होकर ग्रहण करके काम में ले। आज तक की साधना में जो गुण प्राप्त हुये हैं, उनका रक्षण और पोषण करता हुआ मुनि जब तक मोक्ष प्राप्त न हो जाय तब तक उन उपकरणों का उपयोग करता रहे । उपकरणों के अतिरिक्त भी आत्मोन्नति में जो बाधक कारण हों उन्हें छोड़ा जाय, साधक कारणों को भी रागरहित भाव से अपनाया जाय ।...१३ । संयम श्रेणी रे संचरता मुनि, हरता कर्म कलंक । धरता समता रस एकत्त्वता, तत्त्व रमण निःशंक--१४ स० शब्दार्थ...रस एकत्वता एकत्व भावना रूपी रस। निःशंक-निर्भय । भावार्थ...संयम मार्ग में विचरता आगे बढता हुआ मुनि कर्मों के कलंक का नाश करे। तथा समता सहित रस को धारण करता हुआ एकत्त्व-भावना को भाता हुआ निःशंक हो कर आत्मतत्त्व में रमण करे।...१४ जग उपकारी रे तारक भव्य ना, लायक पूर्णानन्द । 'देवचन्द्र' एहवा मुनिराजना, वंदे पय अरविन्द । १५-स० शब्दार्थ...लायक योग्य। पय अरविंद-चरण कमल । भावार्थ...जगत के उपकारी, भव्य जीवों को तारने वाले, पूर्णानन्दी, और योग्य मुनिराजों के चरणारविन्द को देवचन्द्र जी वंदना करते हैं। १५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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