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________________ ३२ अष्ट प्रवचन माता सज्झाय उसका जल मापने के लिये, अर्थात् जंघा प्रमाण जल को लेप, और उससे कम हो तो अलेप, इसका ज्ञान करने के लिये, तथा जल में या स्थल में सहारा लेने के लिये मुनि कानों तक के प्रमाण वाला एक दंड रख सकता है। श्री दशवका-. लिक सूत्र और भगवती जी में इसका उल्लेख है ( दंडगंसिवा० अ० ४) लघु त्रस जीव सचित्त रजादिकनो, वारण दुःख संघट्ट।। देखी पूंजी रे मुनिवर वावरे, ए पूरव मुनि वट्ट-११ स० शब्दार्थ--लघु = छोटे-छोटे। त्रस=चलने फिरने वाले जीव सचित्त =जीवसहित । संघट्ट =स्पर्श। पूजो =पूज प्रमार्जन करके । वावरे काम में ले। पूरव =पहले से। मुनिवट्ट = मुनियों का मार्ग। भावार्थ --अपने उपकरणों को काम में लेते समय मुनि यह देखे कि इनपर लघु त्रस जीव तथा सचित्त रजकण तो नहीं पड़े हुये हैं। यदि हों तो उन्हें देखकर या पूंज करके ( साफ करके दूर हटाके काम में लाये । मुनियों का यह मार्ग पूर्वानुपूर्व से प्रसिद्ध चलता आ रहा है। -११ पुद्गल खंध रे ग्रहण निखेवणा, द्रव्ये जयणा रे तास । भावे आतम परिणति नव नवी, ग्रहतां समिति प्रकाश-१२स०. शब्दार्थ-ग्रहण निखेवणा= लेना और रखना । नव नवीनई-नई। ग्रहतां= ग्रहण करने से। प्रकाश = निर्मल। ___ भावार्थ =पुद्गल खंध अर्थात् पुद्गल समूह से निष्पन्न उपकरण आदि लेने और रखने में की जाने वाली जयणा, द्रव्य जयणा है। भावों से जो आत्मा में नई-नई परिणति आती उसमें कोई बुरी परिणति न आ जाए, इसका विवेक रखना भाव जयणा है। इस जयणा या से उपयोग पूर्वक प्रवृति से समिति प्रकाश में आती है ।--१२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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