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________________ अदान भंड निक्षेपणा समितिकी भावार्थ-इस गाथा में चोलपट्ट ( कटि जंघा ढकने का वस्त्र ) रखने का ही प्रयोजन बताते हैं । -स्थविरकल्पी मुनि, बाल, तरुण, नर, नारी समाज की दुगंछा(घृणा) दूर करने के लिये चोलपट्ट (धोती के स्थान पहनने का वस्त्र धारण करे। क्योंकि जन समाज में रहना, भिक्षा के लिये घरों में प्रवेश पाना, धर्मोपदेश देनेके लिये सभा में बैठना, फिर नमावस्था में रहना बाल तरुण व नारी आदि के लिये घृणा का कारण है। इसलिए चोलपट्ट धारन करके मुनि शुद्ध धर्म का उपदेश दे। --- दंश मशक सीतादिक परीसहे, न रहे ध्यान समाधि । कल्पकादिक निरमोही पणे,धारे मुनि निराबाध-६ स० शब्दार्थ-परिसहे =कष्ट उत्पन्न होने से। समाधि = चित्त की स्थिरता । कल्पक =ओढने का वस्त्र। निराबाध =बाधा रहित । भावार्थ-अब चादर आदि वस्त्र को रखने का प्रयोजन बतालाते हुए कहते है कि डांस, मच्छर, आदि क्षुद्र जन्तुओं के उपद्रव से तथा अधिक शोत के कारण समाधि पूर्वक ध्यान नहीं हो सकता। इसलिये मुनि मूर्छा रहित और मर्यादा सहित वस्त्र धारण करे...६ लेप अलेप नदी ना ज्ञान नो, कारण दंड ग्रहंत । दशवैकालिक भगवई साख थी, तनु स्थिरता ने रे तंत-१० स० शब्दार्थ-लेप =नदी पार करते समय नदी के पानी को उडाई यदि जंघा तक हो तो लेप कहा जाता है। दंड =बडी लठो। तनुस्थिरता =शरीर को स्थिरता के लिये। भावार्थ--दूसरा कोई मार्ग न हो, तब मुनि नदी को पार कर सकता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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