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________________ ३० अष्ट प्रवचन माता सज्झाय इनकी उपयोगिता भी है। यथा भूमि पर अथवा शरीरादि पर कोई सूक्ष्म जीव हो, उसे रजोहरण द्वारा पूजकर अहिंसा का पालन किया जाता है। खुले मुंह बोलने से बातचीत के प्रसंग में व्यक्ति पर, तथा पठन-पाठन-व्याख्यान काल में शास्त्रों पर थूक के छींटे लगने का, अथवा वायु काय के जीवों की विराधना तथा संपातिम ( उडकर पड़ने वाले ) त्रस जीवों की हिंसा का दोष न हो पाये, इस लिये मुखवस्त्रिका की आवश्यकता है। काय योग व वचन योग का वर्णन करने से मनोयोग का ग्रहण स्वयमेव ही हो गया। अतः इन तीनों योगों की समाधि के लिये उपकरण रखना आवश्यक तथा निर्दोष है ।-६ शिव साधन नु मूल ते ज्ञान छ, तेहनो हेतु सज्झाय । ते आहारे ते वली पात्र थी, जयणाये ग्रहवाय-७ स० शब्दार्थ-जयणाये == यत्न पूर्वक । ग्रहवाय = लिया जाता है । भावार्थ-इस गाथामें पात्र (पातरा) रखने की आवश्यक्ता या प्रयोजन बतलाते हुये बताया गया है कि मोक्ष का मूल साधन ज्ञान, है ज्ञान का हेतु स्वाध्याय है, स्वाध्याय का बाह्य निमित्त शरीर का पोषक आहार है । वह आहार तभी अहिंसा पूर्वक हो सकता है, जब कि स्थविरकल्पी मुनि के पास पात्र हो । क्योंकि पात्र के 'बिना करपात्रों में द्रव पदार्थ ग्रहण करते समय यदि बिन्दु मात्र भी नीचे गिर जाय तो अजयणा की संभावना है । वह पात्र भी उत्कृष्ट साधना वालों के पास एक ही होने का बतलाया है ।-७ बाल तरुण नर नारी जंतुने, नम दुगंछा रे हेतु । तेणे चोलपट ग्रही मुनि उपदिशे-शुद्ध धर्म संकेत-८ स० शब्दार्थ-दुगंछा घृणा। हेतु कारण। चोलपट=धोती के स्थान पर 'पहनने का मुनि का वस्त्र । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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