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आदान भंड निक्षेपणा समिति की . श्याने ? मुनिवर उपधि+ संग्रहे, जे परभाव विरत्त । देह अमोही रे नवी लोही कदा, रत्नत्रयी संपत्त-५ स०
शब्दार्थ-उपषि = उपकरण। विरत्त=विरक्त । लोही लोभी। रत्नत्रयी= ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूपी तीन रत्न । श्याने किसलिए, क्यों ___ भावार्थ-एक तर्फ तो अपरिग्रह और असंगता का उपदेश तथा दूसरी ओर चौदह उपकरण रखने की अनुमति देखकर शिष्य प्रश्न करता है, कि गुरूदेव ! अपने शरीर पर भी मोह न करने वाले, लोभ से रहित, पौगलिक भावों से विरक्त, ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूपी रत्नत्रयी से संयुक्त मुनि इन उपकरणों का संग्रह किसलिये करते हैं ? । ५ अगलो गाथाओं में इसका उत्तर देते हुए संयमोपकरण रखने का कारण बतलाते हैं
भाव अहिंसकता कारण भणी, द्रव्य अहिंसक साध । रजोहरणमुख वस्त्रादिक धरे, धरवा योग समाध--६ स०
शब्दार्थ-भाव अहिंसकता=आत्म गुणों की रक्षा। कारण भणी करने के लिये। रजोहरण=ऊन का बना हुआ जैन मुनि का एक उपकरण। मुख-. बस्त्रिका=बोलते समय मुंह के आगे रखने का कपड़ा।
भावार्थ-इस गाथा में रजोहरण एवं मुखवस्त्रिका रखने का प्रयोजन बतलाते है। इसका समाधान करते हुये गुरु बोले, साधु के लिये भाव अहिंसकता ( भावों में किसी के प्रति राग द्वेष न होना ) साध्य है। उसका कारण है द्रव्य अहिंसकता ( द्रव्य से किसी भी जीव की हिंसा न करना )। द्रव्य अहिंसकता का पालन करने के लिये रजोहरण, मुखवस्त्रिका, वस्त्र, पात्र, दंड आदि रखे जाते हैं। एक दृष्टि से तो ये साधु के चिन्ह हैं। दूसरी दृष्टि से
+ उपगरण
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