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इर्या समिति की ढाल
राग वधे स्थिर भाव थी जीरे, ज्ञान बिना प्रमाद | वीतरागता ईहता जीरे, विचरे मुनि साल्हाद - ६ मु० मु०
शब्दार्थ... राग == मोह । स्थिर भाव थी = एक जगह रहने से । इहता - चाहते हुये । साल्हाद = खुशी से ।
भावार्थ... स्थिर आसन से उठने या निवास स्थान, उपाश्रयसे बाहर जाने का दूसरा कारण 'विहार' बतलाया है । मुनियों के लिये यह उचित हैं किवे एकग़ांवसे दूसरे गांव विहार करते रहें । यदि वे शास्त्रोक्त नवकल्पी विहार के नियम का उल्लंघन करके एक ही गांव में निवास बना लेते हैं तो क्षेत्र और श्रावकों के साथ राग भाव बढ़ता है तथा ज्ञानाभ्यास के बिना प्रमाद की वृद्धि होती है । अत: वीतरागता के अभिलाषी मुनि हर्ष सहित विहार करते रहते हैं । —६ एह शरीर भवमूल छैजीरे, तसु पोषक आहार । जाव अयोगी नवो हुये जीरे, ताव अनादि आहार - ७ मु० मु०
शब्दार्थ...भवमूल–जन्म का कारण | पोषक = पोसने वाला । जाव== अयोगी - योग रहित जबतक । ताव तब तक । अनादि सदा 1
भावार्थ - तीसरा कारण आहार है । अर्थात् आहार लानेके लियेस्वाध्यायादि को छोड़कर उपाश्रय से बाहर जाना पड़ता है। क्योंकि जब तक शरीर हैं, तबतक आहार की आवश्यकता रहेगी। आहार तीन प्रकार का है ओज आहार, लोम आहार और कवल आहार अपर्याप्त अवस्था में गर्भ में उत्पन्न होते ही प्रथम समय जो चक्र और शोणित मिश्र आहार लिया जाता है, वह ओज आहार है । पर्याप्त होने के बाद रोमों द्वारा जो आहार प्रतिक्षण लिया जा रहा है, उसे लोम आहार कहते हैं । ये दोनों प्रकार के आहार देवता नारकी तथा समस्त स्थावर जीवों को होता है । तीसरा कवल आहार है, जो मुख द्वारा किया
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