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[ जैन कथा संग्रह
तो दूर हो गई, किन्तु कोढ़ियों का अन्न खाने से उम्बर जाति का कोढ़ हो गया। जिस तरह उम्बरा ( वृक्ष विशेष) के तने की छाल फटी हुई होती है, उसी तरह श्रीपाल कुवर का शरीर फट गया । सब ने उनका नाम रख दिया - उम्बर राजा ।
माता से यह सब कैसे देखा जा सकता था ? रास्ते में किसी से बात की, तो मालूम हुआ कि-"कौशाम्बी में एक वैद्य रहते हैं, वे चाहे जैसा कोढ़ हो, दूर कर देते हैं।" यह सुनकर रानी कौशाम्बी के लिए चल दी, और सब कोढ़ियों से कह दिया-कि तुम लोग उज्जैन जाकर ठहरना, मैं तुम्हें वहीं आकर मिलूगी। कोढ़ियों का दल उज्जैन की तरफ चल दिया।
उस समय उज्जैन में प्रजापाल नामक एक राजा राज्य करते थे। उनके दो कन्यायें थीं। एक का नाम था सुरसुन्दरी और दूसरी का मैना । उन दोनों को राजा ने खूब पढ़ाया-लिखया। फिर एक बार परीक्षा करने के लिये उन्हें राजसभा में बुलवाया।
राजा ने दोनों कन्याओं से पूछा, कि-"बोलो, तुम आपकर्मी हो या बाप-कर्मी।" सुरसुन्दरी ने कहा-"बाप-कर्मी" और मैना ने उत्तर दिया-"आप कर्मी।" राजा सुरसुन्दरी पर बड़े ही प्रसन्न हुए और मैना पर नाराज । उन्होंने सुरसुन्दरी का विवाह एक राजा के कुवर से कर दिया और मैना के लिए बुरे से बुरे वर ढंढने का विचार किया।
राजा नगर से बाहर घूमने निकले । वहां कोढ़ियों का एक दल उन्हें दिखाई दिया। जिन्हें देखने वालों को घृणा हो जाती हो, ऐसे कोढ़ियों के झुन्ड में से राजा ने उम्बर - राजा को पसन्द किया और मैना का विवाह उसी के साथ कर दिया। फिर राजा ने कहा
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