________________
। जैन कथा संग्रह ___ जम्बूकुमार की स्त्रियां, अपने अपने माता-पिता के यहाँ गई, और दीक्षा लेने के लिये उनसे आज्ञा माँगी। उनके माता-पिताओं ने भी उन्हें आज्ञा दे दी। और वे स्वयं भी दीक्षा लेने को तैयार हो गये।
राजा कोणिक को जब यह बात मालूम हुई, कि जम्बूकुमार दीक्षा लेते हैं, तो उन्होंने भी जम्बूकुमार को बहुत समझाया। किन्तु जम्बूकुमार अपने निश्चय पर से जरा भी न डिगे। प्रभव' भी, अपने साथियों सहित दीक्षा लेने को तैयार होगया।
दीक्षा का भारी उत्सव मनाया गया। उस उत्सव में ५२७ मनुष्यों ने साथ दीक्षा ली। ऐसे-बड़े महोत्सव पृथ्वी पर बहुत ही थोड़े हुये होंगे।
जंबूकुमार १६ वर्ष की अवस्था में सुधर्मास्वामी के शिष्य हुये। और संयम तथा तप से अपने मन, वचन तथा काया को पवित्र करने लमे । गुरू के पास उन्होंने शास्त्रों का अभ्यास किया, और थोड़े ही समय में तो वे सारे शास्त्रों में पारंगत हो गये।
सुधर्मास्वामी के निर्वाण पधारने पर वे उनके गणनायक पद पर विराजे । इस तरह जम्बूस्वामी सारे जनसंघ के अगुवा हो गये।
जम्बूस्वामी को अपना जीवन पूर्ण पवित्र बना लेने पर केवलज्ञान हो गया। और कितने ही वर्षों के पश्चात् वे निर्वाण को प्राप्त हो गये। कहा जाता है. कि जम्बूस्वामी इस पंचम काल में अन्तिम केवलज्ञानी हुए हैं उनके बाद फिर कोई केवलज्ञानी नहीं हुआ।
धन्य है, अपार रिद्ध-सिद्ध तथा भोग विलासों को लात मारकर सच्चे सन्त होने वाले जम्बूस्वामी को।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org