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जम्बूस्वामी ]
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ब्रह्मचर्य व्रत लेकर मन में हर्षित होते हुए जम्बूकुमार अपने घर आये और माता-पिता से दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी ।
मां-बाप बोले- 'बेटा ! दीक्षा लेना अत्यन्त कठिन कार्य है । पंचमहाव्रत का पालन तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है। तूं तो अब भी बालराजा कहा जाता है । तुझसे साधु के कठिन व्रत कैसे पल सकेंगे ? फिर तू अकेला ही तो हमारे प्यारा लड़का है, तेरे बिना हमें एक क्षण भी अच्छा नहीं मालूम होता ।"
जम्बूकुमार बोले - " पूज्य माता - पिताजी ! संयम अत्यन्त कठिन है, यह आपका कहना ठीक है किन्तु उसकी कठिनता से तो केवल कायर लोग ही डरते हैं। मैं आपकी कोख से पैदा हुआ हूँ, व्रत लेकर, प्राण जाने पर भी उन्हें नहीं तोडूंगा । मुझ पर आप लोगों का अपार प्रेम है, अतः मेरे बिना आपको निश्चय ही अच्छा न मालूम होगा, किन्तु ऐसे वियोग का दुख सहन किये बिना मुक्ति भी तो नहीं मिल सकती ? इसलिये आप लोग प्रसन्न होकर मुझे आज्ञा दीजिये ।"
मां-बाप ने कहा - "पुत्र ! यदि तुम्हें संयम लेने की बहुत ही इच्छा हो तो हमारी एक बात तुम्हें माननी चाहिये । हम तुम्हारे माता-पिता हैं, अतः हमारे दिए हुए वचन को पालन करने के लिए, हमने जो कन्यायें तुम्हारे लिए स्वीकार कर ली हैं, उनके साथ पहले अपना विवाह करलो, फिर तुम्हारी इच्छा हो तो सुखपूर्वक दीक्षा ले लेना ।"
जम्बूकुमार बोले - " आपकी यह आज्ञा मैं माथे पर चढ़ाता हूँ । किन्तु फिर मुझे दीक्षा लेने से आप रोकियेगा नहीं ।"
माँ-बाप ने कहा - "बहुत अच्छा।
ऋषभदत्त ने आठों कन्याओं के पिताओं को बुलवाया और
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