________________
४८ ]
. [ जैन कथा संग्रह वह स्त्री आगे चली । वहां उसे राक्षस मिला। उसने स्त्री से कहा --"मैं तुझे खाऊंगा।" स्त्री ने कहा -"यदि तुम मुझे खाना चाहो तो खा लेना, किन्तु पहले मुझे अपना वचन पालन करके आने दो। मैं लौटती बार अवश्य इधर आऊंगी।" राक्षस ने कहा-"बहुत अच्छा, किन्तु लौटती बार इधर आना जरूर।" फिर वह स्त्री माली के पास पहुँची। माली ने कहा-"तुझे धन्य है, ऐसी वचन को पालन करने वालो तो मैंने एक तुझको ही देखा है। जा, तेरी प्रतिज्ञा पूरी होगई।
स्त्री लौटकर राक्षस के पास आई । राक्षस ने सोचा-"वाह, यह तो बड़ी सत्यभाषिणी है । इस सत्यवादिनी को कौन खाये ? फिर वह स्त्री से बोला-"बहिन, मैं तुझे प्राणदान देता हूँ।" फिर मिले चोर, उन्होंने भी सोचा-"यह तो सचमुच अपने वायदे की पक्की है । सत्य बोलने काली को कौन लूटे ?" उन्होंने स्त्री से कहा-"जा बहिन, तू जा, हम तुझे लूटना नहीं चाहते।" वह स्त्री अपने घर आई।
यह कथा कहकर, अभयकुमार ने उन लोगों से पूछा-कि बताओ, स्त्री के पति, चोर,राक्षस और माली में कौन सबसे श्रेष्ठ है ? किसी ने उत्तर दिया-माली, जिसने रात्रि के समय जवान स्त्रो को अपने पास आने पर भी उसे अपनी बहन के समान माना। किसी ने कहा, उसका पति जिसने प्रतिज्ञा पालन के लिये इस तरह की आज्ञा दी। किसी ने कहा-राक्षस, जिसने जवान स्त्री को जीवित छोड़ दिया । इतने में एक आदमी बोल उठा, कि सबसे अच्छे वे चोर हैं जिन्होंने इतने गहने लूटने को मिल रहे थे, वे न लेकर उस स्त्री को यों ही छोड़ दिया।
अभयकुमार ने सोचा-अवश्य ही यह मनुष्य आम का चोर है
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org