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[ जैन कथा संग्रह धन्ना के न्याय से गौभद्र सेठ बहुत हर्षित हुये । गौभद्र सेठ ने अपनी कन्या का विवाह धन्ना के साथ कर दिया। उस कन्या का नाम सुभद्रा था।
एक दिन धन्ना खिड़की में बैठा हुआ नगर को देख रहा था। उसने थोड़े से भिखारियों को देखा, जो उसके कुटुम्बो जैसे जान पड़ते थे। धन्ना ने पता लगाया, तो मालूम हुआ कि ये भिखारी उसके कुटुम्बी ही हैं। धन्ना विचारने लगा, मेरे कुटुम्बी इस दशा
में कैसे हैं ? .
___उसने अपने कुटुम्बियों से इस स्थिति में पहुँचने का कारण पूछा । धन्ना के पिता ने उत्तर में कहा, कि- 'बेटा. भाग्यवान् की बलिहारी है। जब तक तु था. तब तक सभी तरह से आनन्द था, लेकिन घर से तेरे जाते ही धन भी चला गया । राजा को तेरे चले जाने की खबर मिलने पर उसने हमको बहत हैरान किया। हमारा धन छीनकर हमें भिखारी बना दिया। इस भिखारीपने से हम वहाँ कैसे रह सकते थे ? इसलिये हम उस प्रदेश से चल दिये।"
धन्ना ने अपने कुटुम्बियों को अपने साथ रख लिया। वह सबको अच्छा-अच्छे भोजन कराता, सबको अच्छे-अच्छे कपड़े पहिनाता, सबकी अभिलाषा पूरी करता।
राजगृह के सब लोगों को धन्ना बहुत प्रिय था । सब लोग धन्ना को ही पूछा करते थे। धन्ना के भाइयों को तो कोई पूछता ही न था । सब धन्ना की ही बड़ाई करते थे। धन्ना के भाइयों को यह बात सहन न हुई। वे पिता के पास आकर बोले,-"पिताजी, आप हमारा भाग अलग करके हमें दे दीजिये । धन्ना के साथ रहना हमें स्वीकार नहीं है।"
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