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जैन कथा संग्रह
यह द्वेष अच्छा नहीं है । मेरे कारण दूसरे भाइयों को दुःख होता है इसलिये मेरा यहाँ से निकल जाना ही अच्छा है । यहाँ से निकल कर मैं परदेश जाऊँगा। और वहां उद्योग करके मौज करूंगा।" अपने भाग्य की परीक्षा भी हो जायगी।
इस प्रकार निश्चय करके धन्ना एक दिन जल्दी उठा । और घर से बाहर निकल कर परदेश के लिये चल दिया ।
धन्ना चलता हुआ और बहुत कुछ देखता हुआ एक नगर के बाहर आया । उस नगर का नाम राजगृह था। नगर के बाहर एक सूखा हुआ बाग था। उस सूखे हुए बाग में ही धन्ना रात के समय ठहर गया। "भाग्यशाली के पांव जहां पड़ें, वहां क्या नहीं होता ?" इसके अनुसार जिस सूखे बाग में धन्ना रात के समय रहा था, सवेरे वह सूखा बाग हरा दोखने लगा।
बाग के माली ने बाग हरा होने की सूचना बाग के मालिक सेठ को दी । यह सूचना पाकर सेठ बहत हर्षित हुआ। सेठ ने धन्ना को अपने यहां बुलाया। धन्ना सेठ के यहां गया । सेठ ने धन्ना को भोजन कराया और बहुत सम्मान किया। फिर सेठ ने धन्ना से बातचीत की। बाग के हरा होने से तथा बातचीत से सेठ समझ गया, कि यह कोई भाग्यवान पुरुष है। धन्ना को प्रतापी पुरुष जानकर सेठ ने अपनी कन्या का विवाह उसके साथ कर दिया।
धन्ना बड़ा भाग्यवान् था । जहाँ उसके पांव पड़ते थे, वहाँ धन का ढेर लग जाता था। धन्ना जहां भी गया, वहां से खूब धन मिला। यहाँ भी वह बड़ा सेठ हो गया।
राजगृह में एकबार राजा का हाथी मस्त हो गया। उस मस्त हाथी को कोई भी वश में न कर सका । राजा ने हिंढोरा पिटवाया कि जो कोई इस हाथी को वश में करेगा, उसके साथ मैं अपनी राज
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