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प्रस्तावना कथा-कहानी के प्रति मानव मात्र का सहज आकर्षण होता है। देश, काल, रुचि और योग्यतायें वय के अनुसार कथाओं की भाषा शैली आदि में अन्तर आता रहता है पर बाल, युवा, बृद्ध, नारी सभी कथा के रस से आनन्दानुभूति करते हैं । मनोरंजन के साथ २ कथाओं के द्वारा जीवन में महत्वपूर्ण संस्कार व शिक्षा भी प्राप्त की जातो है इसीलिए धार्मिक महापुरुषों ने भी नीति और धर्म को लोक जीवन में प्रतिष्ठित करने के लिए कथाओं का माध्यम अपनाया। लोक कथायें मौखिक रूप से चली आ रही थी और पौराणिक कथायें भी श्रुति-परम्परा से प्रवाह रूप में प्रचलित थीं। उन सबको नीति या धर्म से जोड़कर जनता के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने का जो काम धार्मिक पुरुषों ने किया वह अद्भुत है. एवं कल्याणकारी है उपदेश की उपेक्षा कथा-कहानी के माध्यम से कही हुया बात ज्यादा असर करती है । बालक तो प्रारम्भ से हो क्थाकहानी को सुनने में बहुत रस लेते हैं । अपने घर वाने माता-पिता, नानी, दादी आदि को समय मिलते ही प्रायः सन्ध्या के बाद, बालक-बालिकायें प्रेरित अनुरोध करते हैं कि उन्हें कोई कहानी सुनाई जाय।
वर्तमान के व्यस्त जीवन में हम बालक-बालिकाओं की उक्त जिज्ञासाओं को पूरी नहीं कर पाते। इससे बालकों के जीवन में एक रिक्तता और रस-शून्यता का अनुभव किया जा रहा है। विद्यालयों में वे यद्यपि विविध विषयों की शिक्षा लेने में व्यस्त हो जाते हैं, फिर भी उनके मन में रहता है कि कोई सुन्दर, रोचक और रस सिक्त कहानी सुनाने वाला मिले और थोड़ी देर के लिये वे और सब बातें भूनकर उस कथा रस में सराबोर हो जायें। जब वैसा नहीं
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