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वीर धन्ना
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"बच्चो, समझो, ईर्ष्यालु होना अच्छा नहीं हैं।" तीनों लड़कों ने कहा कि ठीक, हम तो ईर्ष्यालु हैं, एक आपका धन्ना ही अच्छा है।"
तीनों भाई धन्ना की बड़ाई से अब और भी अधिक जलने लगे। सेठ ने कहा, कि-"अच्छा, मैं फिर से तुम चारों की परीक्षा लेता हूँ।" सेठ ने अपने चारों पुत्रों को बुलवाया और उन्हें थोड़ोथोड़ो सोने को मुहरें देकर कहा-इस बार होशियारी से काम लेना। इन सोने की महरों से व्यापार करके संध्या के समय घर लौट आना । और जो आमदनी हो, उससे सबको भोजन कराना।"
चारों भाई व्यापार करने चले । धन्ना के तीन भाई बहुत घूमे, लेकिन उनकी समझ में यही च आया कि हम कौनसा ध्यापार करें।
धन्ता पशुओं के बाजार में गया । पशुओं के बाजार में गायें भैंसें, घोड़े, ऊँट. बकरे, भेड़ें आदि बहुत से पशु थे। धन्ना ने वहाँ एक अच्छा सा भेड़ा खरोदा । भेड़ा बहुत तगड़ा अच्छा था ।
भेड़ा लेकर धन्ना बाजार में चला । मार्ग में धन्ना को राजकुमार मिले। उनके साथ भी अपना भेडा था और वे सबके साथ बाजी लगाकर उनके भेड़े से अपना भेड़ा लड़ाते थे।
भेड़ा लिए हुए धन्ना को देखकर राजकुमार ने धन्ना से कहा“सेठ पुत्र, भेडा लड़ाना है ?" धन्ना ने कहा कि-"प्रसन्नता से लड़ाइये।" राजकुमार बोले कि-'भेड़ा लडाने में एक शर्त है, जिसका भेडा हारेगा, वह सवा लाख सोने की मुहरें देगा।" धन्ना ने उत्तर दिया कि-"मुझे यह शर्त स्वीकार है" । धन्ना ने अपना भेडा राजकुमार के भेड़े से लड़ाया। सजकूमार का भेडा धन्ना के भेड़े से हार गया, इसलिए राजकुमार ने धन्ना को सवा लाख सोने की मुहरें दे दी।
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