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[ जैन कथा संग्रह लगा कि-यह मेरा दोस्त किराना खरीदने के लिए कहां से आ गया? अब. मैं इसी से किराना खरीद ल । सेठ ने धन्ना से पछाकि "क्यों भाई, किराना बेचना है ?" धन्ना ने उत्तर दिया "हाँ बेचना है" । सेठ ने फिर पूछा--कि-'क्या लोगे'? धन्ना बोला"नफे की सवा लाख सोने की मुहरें लगा।" सेठ ने कहा- अच्छा ऐसा ही सहो, तुम नफा ले लो और मुझे किराना दे दो।"
धन्ना ने सेठ से नफा के सवा लाख स्वर्ण मुद्रा ले ली और घर की ओर रवाना हुआ।
धन्ना के तीनों बड़े-भाई व्यापार करके धन प्राप्त करने के लिए बाजार में गए। उन्होंने खूब दौड़ धूप की, परन्तु काफी लाभ न हुआ। संध्या होगई। पिता के हुक्म के मुताबिक संध्या के समय घर को लौटना आवश्यक था, इसलिए तीनों भाई घर की तरफ चले।
चारों भाई घर आये । तीनों बड़े-भाइयों की आय बहुत कम हुई थी, इसलिए इन तीनों में से एक भाई मूग लाया, दूसरा भाई चावल लाया, और तीसरा भाई उड़द लाया । लेकिन धन्ना कुटुम्ब को भोजन कराने के लिए मेवा-मिठाई लाया। और साथ ही भाभियों को देने के लिये अच्छे-अच्छे वस्त्र और आभूषण भी लाया। . सारा कुटुम्ब धन्ना पर प्रसन्न हुआ, लेकिन उन तीनोंभाइयों के मुंह उतर गये । वे कहने लगे कि- "धन्ना ने ठगाई की है, उसने बेचारे सेठ का उल्टा कागज पढ़ लिया था। इस प्रकार ठगाईं करना, व्यापार नहीं है । व्यापार में धन्ना की परीक्षा करने पर मालूम हो जायेगा, कि धन्ना प्रशंसा के योग्य है, या हम प्रशंसा के योग्य हैं।"
धनसार सेठ ने अपने तीनों लड़कों को समझाते हुए कहा
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