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________________ सौभाग्यशाली वीर-धन्ना . दक्षिण देश में गोदावरी नदी के किनारे पर एक बड़ा शहर था । उसका नाम पैठण था । वहां एक सेठ रहता था। उसका नाम धनसार था । धनसार सेठ के चार पुत्र थे। उनमें सबसे छोटे पुत्र का नाम धन्ना था । धन्ना में उसके नाम के अनुसार ही गुण भी थे। उसके जन्मते ही धनसार सेठ के यहां धन वृद्धि होने लगी थी। धन्ना खेलने में बहुत चालाक था । धन्ना के पिता ने धन्ना को आठ वर्ष की अवस्था में पढ़ने के लिए बिठाया । पाठशाला में धन्ना लिखना,पढ़ना, गणित, राग-रागिनी आदि बहुत सी कलायें सीखा और समस्त विद्यायें पढ़ीं। सब लोग धन्ना की प्रशंसा करने लगे, और कहते, कि “धन्ना बहुत हुशियार है।" धन्ना के बड़े भाई धन्ना की बड़ाई सुनकर ईर्ष्या के मारे जलने लगे । वे आपस में बातें करते हुये कहने लगे, कि धन्ना की इतनी बड़ाई क्यों ? उसमें पिताजी तो धन्ना की बड़ाई सीमा से भी अधिक करते हैं। जब देखो तब धन्ना की प्रशंसा की ही बात । वे यही कहा करते हैं कि मेरा धन्ना ऐसा है, मेरा धन्ना वैसा है। समझ में नहीं आता, कि छोटा सा बालक धन्ना ऐसा क्या करता है, जिसके कारण पिताजी उसकी इतनी बड़ाई करते हैं ? धन्ना केवल खातापीता है तथा चलता फिरता है, तब भी उसकी इतनी बड़ाई करते हैं और हम तीनों भाई व्यापार करके धन कमाते हैं, फिर भी पिताजी हमारी बड़ाई क्यों नहीं करते ?" होते-होते धनसार सेठ को मालूम हुआ कि मेरे तीनों लड़के अपने छोटे भाई से ईर्ष्या करते हैं। स्वयं तो बुद्धिमान तथा विचार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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