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________________ चन्दनबाला ] [ २५ अतः चन्दनबाला की इच्छा पूरी हुई । उसने प्रभु महावीर से दीक्षा लेली । यही भगवान - महावीर की सर्व प्रथम और मुख्य साध्वी थीं । उन्होंने बड़े कड़े - कड़े तप किए और संयम का सुचारु रूप से पालन किया । इस तरह उन्होंने अपने मन, वचन और काया को पूर्ण - पवित्र बना लिया । अनेक राज-रानियाँ तथा अन्यान्य स्त्रियां उनकी शिष्या बनीं | छत्तीस हजार साध्वियों में वे प्रधान आर्या बनाई गई । १६ सतियों में उनके नाम का नित्य स्मरण किया जाता है । आयुष्य पूरा होने पर, महासती चन्दनबाला निर्वाणपद को प्राप्त हो गई। उनके शील, तप और त्याग को धन्य है । उनके गुणों का जितना भी वर्णन किया जाय, कम है । प्रत्येक बहिन का कर्तव्य है कि वह चन्दनबाला के जीवन को समझे तथा उनका अनुकरण करते हुए, उन्हीं की तरह अपनी आत्मा का कल्याण करे | Jain Educationa International --- For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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