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________________ १४८ ] [ जैन कथा संग्रह उन्होंने खेमा से कहा-“अवसर देखकर जो कुछ मांगना हो वह मांगो।" खेमा ने कहा, कि-"कलेवा करने को मेरे यहाँ पधारिये।" चापसी मेहता को निश्चिन्तता हुई कि इसे किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता नहीं है। फिर उन्होंने जवाब दिया कि-"भाई हम लोगों को घड़ी भर भी ठहरने का अवकाश नहीं हैं । हम बड़े जरूरी काम से जा रहे हैं।" खेमा ने फिर कहा-"चाहे जो हो, किन्तु आप अपने धर्मबन्धु का आंगन अवश्य पवित्र कीजिए । ठीक कलेवा के समय पर आपका यहाँ से यों ही जाना कदापि सम्भव नहीं हो सकता।" स्वधर्मी-भाई का निमन्त्रण ठुकराया नहीं जा सकता था, अतः सब लोग कलेवा के लिए खेमा के यहाँ गये। खेमा ने रोटी और दही का नाश्ता करवाया। नाश्ते के बाद महाजनों ने खेमा से जाने की स्वीकृति चाही। खेमा ने कहा-“सेठ साहब ! अब भोजन करने के समय में थोड़ी देर और है । कुछ देर में ही गरमागरम भोजन तैयार हुआ जाता है, इसे जीमकर आप प्रसन्नता पूर्वक पधारियेगा। खेमा ने हलुआ-पूड़ी तथा भुजिए-पकौड़ी आदि पकवान तैयार करवाये और उन लोगों को बड़े प्रेम से भोजन करवाया। भोजन कर चुकने पर खेमा ने उनसे पूछा कि-"आप लोग किस कार्य के लिए बाहर निकले हैं ?" सेठों ने सारी कथा कह सुनाई। और फेहिरस्त में खेमा का नाम लिख कर वह खेमा के आगे रख दी। खेमा को उस लिस्ट में अपना नाम देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। उससे कहा कि-"मैं अपने पिता से पूछकर जवाब देता हूँ। खेमा अपने बूढ़े पिता, देवराणी के पास गया और उसने उनके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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