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जैन कथा संग्रह
जिससे मैंने उन्हें यह वस्त्र ओढ़ाया था और उनका बुखार ठीक हो गया था। . यह सुनकर, राजा को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने पेथड़कुमार को जेल से छोड़ दिया और उसने अपनी भूल के लिए माफी मांगी। अब राजा जयसिंह को लीलावती की याद आई, जिससे वे बहुत शोक करने लगे। यह देखकर पेथडकूमार ने कहा, कि-"महाराज! मैं थोड़े ही समय में रानी लीलावती को आपसे मिला दूंगा, आप जरा भी शोक न कीजिये।" राजा जयसिंह को यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ, कि रानी लीलावती अभी जीवित कैसे है। फिर, पेथड़कुमार ने जो कुछ हुआ था, वह सब राजा से कह सुनाया। राजा ने लोलावती को मंगवाकर, अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी और फिर सुख से रहने लगे।
अब पेथडकुमार को वृद्धावस्था आनी शुरू हुई। इस समय, उनका मन अधिक पवित्र तथा अधिक सेवा-भाव वाला बन गया। उन्होंने सिद्धाचलजी की यात्रा के लिए संघ निकालने का इरादा किया।
बहुत-बड़ा संघ अपने साथ लेकर उन्होंने सिद्धाचल (शत्रुजंय) को यात्रा की और वहाँ श्री आदिनाथ भगवान की बड़ी भक्ति की। यहाँ से वे गिरनार गये । वहां एक सज्जन से स्पर्धापूर्वक बातचीत हो जाने के कारण, इन्होंने ५६ मन सोना की बोली बोलकर 'इन्द्रमाल' पहनी।
यह यात्रा करके, पेथड़कुमार वापिस मांडवगढ़ लौट आये । वहाँ उन्होंने अपने जाति-भाइयों की खूब मदद की । अनेकों लेखक बिठाकर, बहुत सी पुस्तकें भी लिखवाई, जिनसे बड़े-बड़े सात ज्ञान भण्डार भर गए।
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