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महामन्त्री वस्तुपाल - तेजपाल ]
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गुजरात की सत्ता अच्छी तरह जमाई और चारों तरफ शान्ति तथा व्यवस्था की स्थापना करके विजय का डंका बजाया ।
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ये दोनों भाई लड़ाई तथा राज्यकार्य में जैसे निपुण थे, वैसे हो धर्म में भी बड़ी श्रद्धा रखने वाले थे । वे अष्टमो और चतुर्दशी को उपवासादि करते, तथा सामायिक एवं प्रतिक्रमण भी नियमित रूप से करते थे । अपने धर्म - बन्धुओं पर उन्हें अगाध प्रेम था । प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपया अपने धर्म - बन्धुओं के लिये खर्च करने का उन्होंने नियम कर रखा था ।
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उनकी उदारता की कोई सीमा न थी । वे मुक्तहस्त होकर दान करते हो जाते थे । होता यह था कि ज्यों-ज्यों वे धन का सदुपयोग करते ही जाते थे, त्यों-त्यों धन और बढ़ता ही जाता था । इसलिये वे दोनों भाई विचार करने लगे, कि इस धन का आखिर क्या किया जाय ?
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तेजपाल की स्त्री अनुपमादेवी बुद्धि की भंडार थी, अतः इसके लिये उससे सलाह पूछी। उन्होंने जवाब दिया, कि इस धन के द्वारा पहाड़ों के शिखरों की शोभा बढ़ाओ, अर्थात् वहां सुन्दरकारीगरी पूर्ण मन्दिर बनवाओ। यह सलाह सबको पसन्द पड़ी । अतः शत्रुञ्जय, गिरनार और आबू पर भव्य मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। इनमें भी आबू के मन्दिर बनवाते समय तो उन्होंने पीछे फिर कर भी न देखा कि इस पर कितना धन खर्च हो रहा है। उन्होंने देश के अच्छे से अच्छे कारीगर एकत्रित किये, और नक्सी (कोरणी ) करते समय गिरने वाले चूरे के बराबर उन लोगों को सोना अथवा चांदी पुरस्कार में दिया । इन मन्दिरों को शीघ्र पूरा करवाने के लिये उन्होंने अपनी तरफ से वहां
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