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( ६० ) चाहिये। यथासम्भव चन्दन-पूजा की केशर अपने ही हाथ से घिसनी चाहिये यदि नहीं वन सके तो पूजारी से विवेक पूर्वक मुखकोश बंधाकर ओरशिया और चन्दन अच्छी तरह से साफ करवा कर पीछे निर्मल जलसे घिसवामा चाहिये। ® दोपक की बाट (बत्ती) अपनी ही रुडे वा सत की होनी चाहिये।
(१६) प्रथम जल-जा करते समय मोरपंख का उपयोग जरूर करना चाहिये। और यथासंभव जीवयतनाका खूब ध्यान रखना चाहिए। पहिले श्रीमूलनायकजो ही का अभिषेक करना चाहिये, उस समय जल के साथ अधिकांश रूप से दूध एवं अल्प दहो, घृत और शर्करा (बूरा) मिलानी चाहिये यह पंचामृत है प्रसंग-वश तीर्थजल, गुलाबजल बगैरह भी मिलाना चाहिये अभिषेक के पीछे भीगे वस्त्र से प्रथम दिवसकी
* केशर घसने का ओरशिया ऐसे स्थान पर रखना चाहिये जहां प्रभुकी दृष्टि नहीं पड़तो हो ।
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