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( ८७ ) अक्षत अच्छे एवं यथासम्भव अखण्डित होने चाहिए चाहे फल संख्या कम हो अथवा अधिक मगर उत्तम जाति के अच्छे फल होने चाहिये। तुच्छ जाति के फल कभी नहीं चाहिये। इसके अनन्तर नैवेद्य तरीके मिठाई वगैरह कोई भी पदोथ चढ़ाया जाय मगर वह अच्छा होना चाहिये । पश्चात् 'निस्सिहो' कह कर चैत्यबंदन करना चाहिये।
(१२) चैत्यबंदन का समावेश भाव पूजामें है। इसलिये पहिले द्रव्य-पूजा के सम्बन्धमें कह कर बाद में इसके विषयमें लिखा जायगा। द्रव्य-पूजा के अनेक प्रकार है। जिसमें मुख्य आठ प्रकार है:-जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, फल और नैवेद्य । इन आठोंके सम्बन्ध का अलग २ विचार किया जायगा। _ (१३) द्रव्य-पूजा में शरीर-शुद्धि, भूमिशुद्धि, वस्त्र-शुद्धि, उपकरण-शुद्धि और अन्तमें भाव-शुद्धि की परम आवश्यकता है। शरीर
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