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"जिनराज-भक्ति"
(लेखकः-कुंवरजी आणंदजो भावनगर)
जब भक्तिके प्रति होनेवाली भाशतनाओं का लेख लिखा गया उस समय कितने ही बन्धुओंकी ओर से यह मांग आई कि इस लेख के साथ २ इसो की पुष्टि में भक्ति किस प्रकार करनी चाहिए इसके सम्बन्धमें भी एक लेखकी मावश्यकता है। कई सुज्ञ बन्धु तो ऊपर के लेख ही से भक्ति के प्रकार समझ सकते हैं, परन्तु कितनेक सरल प्राणियों के लिये तो स्पष्ट रूप से भक्ति को प्रतिपादन करनेवाले लेख की जरूरत रहती है इसी मांग पर इस लेख को लिखने की प्रवृति की जाती है। ___ तीर्थंकर भगवान हमारे परमोपकारी है, हमको मोक्ष का शुद्ध मार्ग बतानेवाले हैं और सर्व दोषोंसे विमुक्त हैं साथही सर्व गुणों से
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