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( ३७ )
गाथा : -- तंबोले पाण भोयण, वाणह मेहुन्न सुअण निट्ठवणं । मुत्तुच्चारं जूअ वज्जे जिणनाह जगईए ॥ १ ॥
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( देववंदन भाष्य )
भावार्थ :- जघन्य :- जघन्य से दश ओसातनायें प्रत्येक श्रावक को नहीं करनी चाहिये वे ये हैं :१ मन्दिर में तंबूल याने पान सुपारी आदि मुखवास खाना २ पानी पीना ३ भोजन करनो ४ जता मोजा आदि पहनना ५ रति क्रीड़ा करना ६ निद्रा लेना ७ कफ थूकन ८ पिशाब करना ६ बड़ी शंका ( शौच ) करना १० और जना खेलना । यद्यपि ८४ और ४२ के अन्तर्गत भो यही आशातनायें है किन्तु तीन भेद करनेका कारण यह है कि : जो ८४ प्रशातना न टाल सके वह ४२ टाले वह ४२ टाले जो वह भी न टाल
यथा शक्य
संके तो १० तो अवश्य ही टाले। ८४ अशातनाओं में कोई भी न करना मुख्य कर्तव्य है । मध्यम ४२ आाशातनायें इस प्रकार हैं:१० तो पूर्व कथित, ११ जना खेलते देखना १२ पलांठी मारना १३ पग पसारना
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