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( १.७ ) कर विशुद्ध तन, मन, धनसे परमात्मा की भक्ति करता है उसका इस भव में तथा पर भव में अवश्य परम कल्याण होता है। गुणग्राही महानुभाब इस लेख को पढ़ कर इसका सदुपयोग करें जिससे उनका कल्याण होगा, इतना कह कर यह लघु लेख समाप्त किया जाता है।
कुंवरजी आणंदजी।
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