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( १०६ ) हाथ आश्री योग मुद्रा रखनी चाहिये। इन मुद्राओंका स्वरुप किसो विज्ञ पुरुष से समझ लेना चहिये एवं उसी प्रमाणसे इन मुद्राओंको बराबर उपयोगमें लाना चाहिये।
यह लेख जिनराजभक्ति कैसे करनी चाहिये इसकी सूचनाके लिए संक्षेप से लिखा गया है, यह विषय इतना विशाल है कि इसका जितना भो विस्तार किया जाय, हो सकता है, परन्तु अल्प वुद्धिवालों के समझमें आजाय जितना ही लिखना लेख का उद्देश्य है। भक्ति करने की इच्छा जब से होती है, उसी समय यह ध्यानमें रखना चाहिए कि कोई आशातना ® नहीं हो जाय क्योंकि अशातना भक्तिका नाश कर देती है। जो मनुष्य भक्ति के असल रूप को समझ • आशातना ८४, मोटी आशातना १० वर्जनी चाहिये। उपरान्त पूजा करते समय कलश, धूपदान वगैरह का प्रभुजी के लग जाना तथा बिम्ब का ढलजाना आदि आशातनाओंका निवारण करना वाहिये।
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