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________________ ६४ में ८४ जिन प्रासाद विनिर्मित करवाये और अनन्त द्रव्य व्यय करके उनको दण्ड-स्वर्ण कलशादि ध्वजा - पताकानों से प्रतिष्ठित करवाये । सात प्रसिद्ध स्थानों में ज्ञान भण्डार संस्थापित किये । एक वर्ष उसने आपसे ग्यारह (११) अगों का श्रवण प्रारम्भ किया था जब पांचवा अंग 'भगवती' का श्रवण प्रारम्भ हुआ वह प्रत्येक श्लोक पर एक स्वर्ण मोहर चढ़ाता चला गया। इस प्रकार उसने इस प्रसंग पर ३६००० छत्तीस सहस्त्र स्वर्ण मोहरें चढ़ाई थी । आपके उपदेश एवं सम्मति - प्रदेश से उसने उक्त विपुल धनराशि की शास्त्रों की प्रतियां लिखवा कर मृगकच्छादि स्थानों में संस्थापित करवाने में व्यय की । पेड़ का पुत्र झांझरण भी पिता के सहशही आपका अनुरागी था । उसने भी आपके उपदेश से विपुल द्रव्य धर्म के सात क्षेत्रों पर समय-समय पर व्यय किया । आपकी निश्रा में संघ यात्रायें कीं, अनेक स्थानों में छोटे-बड़े जैन मंदिर बनवाये । आपश्री उच्च कोटि के विद्वान् भी थे । देवेन्द्रसूरि रचित नव्य कर्म ग्रंथों का आपने संशोधन किया था । उनके द्वारा रचित स्वोपज्ञ टीका का भी आपने संशोधन किया । श्रापने कई नवीन ग्रंथ लिखे जिनकी यथा प्राप्तसूची निम्नप्रकार है : १ – संघाचाराख्य भाष्यवृत्ति २ सुप्रधमेतिस्तव, जै० साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, परिच्छेद ५८० और ५८३. जै० गुर्जर कवि भाग २. पृ० ७१६, ७१७. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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