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फिर उज्जैन में किसी प्रतिष्ठित जैन धर्म विरोधी योगी को योगिक क्रियाओं से परास्त करके उसको आधीन किया था और जैन धर्म का भारी प्रभाव प्रसारित किया था । ऐसे कई चमत्कार पूर्ण उल्लेख आपके सम्बन्ध में प्राप्त होते हैं ।
माण्डवपुर अथवा मण्डपदुर्ग तीर्थ का निवासी उपकेशज्ञातीय प्रसिद्ध पेड़ आपका परम भक्त था और श्रेष्ठी पेथड़ ने आपके सदुपदेशों से प्रेरणा एवं कई बार तत्वावधानता में बड़े बड़े धर्म कार्य - तीर्थ यात्रा, संघसम्मान, तीर्थ मंदिर साहित्य सम्बन्धी सेवाओं के भारी भारी ब्यय वाले कार्य किये थे । पेथड़ और उसका वंश प्रापका सदा अनुरागी प्राज्ञावर्ती ही रहा। यह पेथड़ के इतिहास से स्पष्ट सिद्ध होता है । माण्डवगढ़ में बसने के पूर्व पेड़ विद्यापुर - बीजापुर में रहता था। एक वर्ष आप श्री ने बीजापुर में चातुर्मास किया । आपके व्याख्यानों एवं आपकी गंभीर विद्वता और महान् चारित्र का पेड़ पर प्रतिशय प्रभाव पड़ा और फलतः वह आपका परम भक्त हो गया । जब पेड़ ने अनन्त धन उपार्जित कर लिया और कुछ कारणों से बीजापुर का त्याग करके माण्डवगढ़ में आकर बस गया था, तब से उसने आपकी प्रेरणा एवं उपदेशों से जो धर्म और साहित्य की सेवायें की हैं वे जैन इतिहास में स्वर्णाक्षरों में प्रति गौरव के साथ स्मरण की जाती हैं। पेड़ ने आप के सदुपदेशों से मालवा, गुर्जर राजस्थान के सुदूर एवं भिन्न २ ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध नगर तीर्थ राजधानियों
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