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________________ ५८ उसके पुत्र प्रासदेव या पौत्र नेमड़ ने नागौर से पालनपुर में वास किया और फिर अंत में बोजापुर में स्थिर बास किया । महामात्य वस्तुपाल और तेजपाल के साथ इनका स्नेह-सम्बंध और गाढ़ मैत्री थी। तभी मंत्रो भ्रातामो ने नेमड़ के वंशजों को अपने द्वारा नि०जिनालयों में द्रव्य व्यय करने दिया क्योकि जहां २ मंत्री भ्राताओं ने विपुल द्रब्य व्यय किया है वहाँ २ उन्होंने भी कुछ द्रव्य प्रायः व्यय कियाहै । इसमें इन को लाभ लेने देने से सुष्पस्ट है कि दोनों कुलों में गाढ़ स्नेह और मैत्री थी। साथ ही दोनों कुलों में गाढ़ सम्बंध पर एवं धर्म और साहित्य-सेवा कार्यों में व्यय किये गये द्रव्य के अनुमान से नेमड़ का कुल अत्यन्त गौरवशाली,धनी और दूर २ तक प्रसिद्ध था, सिद्ध होता है । नेमड़ के प्रपौत्रों में दो के नाम बोरधवल और भीमदेव था। ये नाम उस समय के महान् गुर्जर शासकों के नाम थे । यह नाम देने का साहस करना कुल का शक्ति सम्पत्र' वैभवशाली' गौरवशाली होना स्वत: सिद्ध कर देता है और वैसे वीरधवल और भीम देव थे भी महान् प्रतिभाशाली। इन दोनों ने श्री देवेन्द्रसूरि के द्वारा वि० सं १३०२ में उज्जैन में दीक्षा ग्रहण की थी और आगे जाकर ये क्रमशः विद्यानंदसूरि और धर्मघोषसूरि नाम से बड़े प्रसिद्ध प्राचार्य हुए हैं। इनका परिचय स्वतंत्र प्रकरण से दिया जायगा। वीर धवल और भीमदेव के ज्येष्ठ माता देवचन्द्र ने अपने विपुल द्रव्य से तीर्थों की संघ यात्रायें की थी और विपुल द्रव्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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