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सहयोग रहाहोगा।
(६) श्री शब्दानुशासन वृहह त्ति-वि० सं० १३०० में बीजापुर में श्रे० लाहड़ ने अन्य श्रावक सा० रत्नपाल, श्रे० वोल्हण, सा० आसपाल के द्रव्य-सहाय से लिखवाई। ९
(१०) श्री उपासकादिसूत्रवृत्ति-वि० सं० १३०१ फा० कृ० १ शनिश्चर को वीजापुर में श्री देवेन्द्रसूरि, विजयचन्द्रसूरि, उपा० देवभद्रगणि के सदुपदेश से सा ० नेमड़ के तीनों पुत्रों सा० राहड़, सा० जयदेव, सा० सहदेव ने अपने २ पुत्रों के सहित श्री चतुर्विध संघ के पठन वाचन के लिये स्वश्रेयार्थ लिखवा कर अपित की
(११) श्री आचारांगचूरिण-वि ० १३०३ ज्ये • शु ० १२ को स्व एवं समस्त स्वकुटम्ब के श्रेयार्थ सा० लाहड़ ने लिखवाई। ११
(१२) श्री ज्ञाता धर्मकथासूत्र (सवृत्ति)-वि० सं० १३०७ में स्व एवं समस्त स्वकुटुम्ब के श्रेयार्थ श्रे० लाहड़ने लिखवाई ।'२
(१३) श्री व्यवहारसूत्र सवृत्ति ( खण्ड २,३)- वि० सं० १३०६ भाद्र० शु० १५ को श्रेलाहड़ ने समस्त स्वकुटुम्ब के सहित स्व एवं समस्त कुटुम्ब के श्रेयार्थ लिखवाई । १३ ।
उपर्युक्त धर्म कृत्यों एवं साहित्य-सेवा कार्यों से सुस्पस्ट है कि मूलपुरुष वरदेव नागौर(राजस्थान) का निवासी था। उसने अथवा (८) प्र० सं०प्र० ६२ (8) ६३,(१०) ५५.(११) ५३,१२) ५१
(१३) २४, ५०
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