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________________ सम्मिलित रहकर कई ग्रन्थों की प्रतियां लिखवाकर पौषधशाला, भण्डार एवं मुनियों की भेंट की हैं । ___ (१) 'श्री लिङ्गानुशासन' की प्रति वि० सं० १२८७ में बीजापुर में श्रेष्ठि लाहड़ ने अन्य श्रावक सा० रत्नपाल, श्रे० वोल्हण और ठ० अासपाल के द्रव्य-सहाय से लिखवाई ।' । ____ (२) 'देववंदनक' आदि प्रकरण-वि० सं० १२६० माघ कृ० १ गुरुवार को बीजापुर में श्रेष्ठि सहदेव के पुत्र सा घेढ़ा (पेटा) और गोसल ने स्वमातृ सौभाग्य देवी के श्रेयार्थ पं० अमलेग द्वारा लिखवाई। लिखवाने में श्रेष्ठि लाहड़ का सहयोग था।' (३) श्री नंदि अध्ययनटीका ( मलयगिरोय ) वि० सं० १२६२ वै ० शु . १३ को बीजापुर में उपा ० देवभद्रगाणि, पं० मलयकीर्ति और पं० अजितप्रभगरणी के उपदेश से श्रेलाहड़ और अन्य श्रावक सा०रत्नपाल , ठा० विजयपाल, श्रे० वील्हण, महं० जिणदेव, ठ ० आसपाल, अं० सोल्हा, ठ० अरसिंह ने सम्मिलित द्रव्य-सहाय से मोक्षफल की प्राप्ति की शुभेच्छा से समस्त चतुर्विध संघ के पठनार्थ लिखवा कर समर्पित की। ( ४ ) श्री आवश्यक बृहद्वृत्ति-वि० सं० १२६४ पौष शु० १० मंगलवार को स्व एवं समस्त कुटुम्ब के श्रेयार्थ सा० लाहड़ ने लिखवाई (१) प्र० सं० ता० ०प्र० ८७. (२) प्र० सं० ता० प्र० ६८, (३) ८४, (४) ५२, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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