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है। उक्त सकार्यों के करवाने में श्रोष्ठि लाहड़ का नाम विशेषत: उल्लिखित किया गया मिलता है।
(१५) जावालीपुर-श्री पार्श्वनाथ मन्दिर की भमती में गवाक्ष।
(१६) लाटापल्ली-श्री कुमार विहार-मन्दिर की भमती में दण्डकलशादि युक्त एक देवकलिका और भ० श्री अजितनाथ को प्रतिमा।
(१७) लाटापल्ली-उपरोक्त विहार में ही दो कायोत्सर्गस्थ प्रतिमायें-१ श्री शांतिनाथ और २ श्री अजितनाथ । - (१८) चारूप-अणहिल्लपुर पत्तन के निकट के ग्राम चारोप में छः वस्तु वाला जिन मन्दिर गूढमण्डप और श्री आदिनाथ बिम्ब।
ये उपरोक्त कार्य श्रेष्ठिजिणचन्द्र की पत्नी चाहिणी देवी के पुत्र सं० देवचन्द्र ने अपने पिता, माता एवं स्वश्रेयार्थ करवाये । जैन ग्रन्थों की प्रतियां लिखवाने में श्रेष्ठि लाहड़ का उत्साह
__अधिक रहा है जैसा निम्न पंक्तियों से स्वतः प्रागम-सेवा स्पष्ट हो जाता है । आगम-सेवा सम्बंधी अधिक
प्रेरणा इस कटम्ब को तपागच्छीय श्री देवेन्द्रसूरि, विजयचन्द्रसूरि और उपाध्याय देवभद्रगरिण के धर्मोपदेशों से अधिक प्राप्त होती रही हैं और उनके फलस्वरूप भिन्न-भिन्न संवतों में स्वतंत्र रूप से और कभी-कभी अन्य भावक सज्जनों के
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