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पल्लीवालगच्छ और पल्लीवालजाति का प्रतिबोधक और प्रतिबोधित का संबंध रहा है। अतः एक-दूसरे को प्राचीनता एवं गौरव में एक-दूसरे का भाग सम्मिलित है। इस दृष्टि से पल्लीवालगच्छ की प्राप्त दो पट्टावलियां, पल्लीवालगच्छ-साहित्य और पल्लीवालगच्छीय आचार्यों के प्रतिष्ठित लेख यथा प्राप्त परिशिष्ट में दे दिये गये हैं। परिशिष्ट में सचमुच श्री नाहटाजी का लेख 'पल्लीवालगच्छ पट्टावली' जो श्री आत्मानन्द अर्धशताब्दी ग्रन्थ में प्रकाशित हना हैं, पूरा २ सहा यक हना है और वैसे तो श्री नाहटाजी इस ग्रन्थ के लिखाने वाले होने से मेरे निकट अति आदरणीय हैं कि जिनकी कृपा से मैं पल्लीवाल जाति का इतिहास जान सका और लिख सका। ___अन्त में जिन २ विद्वानों की कृतियों का इस लघु वृत्त के लिखने में उपयोग हपा है उन सर्व के प्रति आभार प्रदर्शित करता है और कामना करता है कि पाठक इसका सम्मान करेंगे तो मैं अपनी इस तुच्छ सेवा को भी महत्वशाली समझूगा । शुभम ।। १३-१-१९५६
दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद'. सरस्वती विहार
बी० ए. भीलवाड़ा (मेवाड़)
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