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गोत्रों पर विचार करते समय यह ध्यान में आता है कि अन्य जैन वैश्यजातियों के गोत्रों की स्थापना से इस ज्ञाति के गोत्र की स्थापना का ढंग अलग रहा है। अन्य ज्ञातियों में अनेक गोत्र सम्मिलित हुए और इस ज्ञाति में ज्ञाति के बन जाने के कई शताब्दियों पश्चात् गोत्रों में विभाजन हुआ । धनपति शाह के गुजा के ४५ पुत्र और सोहिल के ७ पुत्र इन बावन पुत्रों से बावन गोत्र बने, कहा जाता है; परन्तु मुझे इसमें एक वस्तु देखकर शंका उत्पन्न होती है कि कई गोत्र ग्रामों के पीछे भी नाम विश्रुत हुए हैं जैसे वड़ेरी ग्राम से वडेरिया, सलावद से सलावदिया, पोंगौरे से पींगोरिया आदि । ज्ञाति में बावन गोत्र माने जाते हैं और वे भी गुंजा और सोहिल के बावन पुत्रों से । तब ग्रामों के पीछे जो गोत्र पाये जाते हैं उनकी स्थिति क्या है ।' तात्पर्य यह है कि ज्ञाति के अधिक गोत्र गुंजा और सोहिल के पुत्रों से और कुछ गोत्र ग्रामों के नामों से बने - मानना अधिक संगत है। नीचे बावन गोत्र की सूची दी जाती है । ग्रामों से परिचित पाठक I स्वयं समझ सकेंगे कि किस गोत्र के नाम में किस ग्राम के नाम का समावेश है ।
गुलन्दराय की जीरंगं पुस्तक से ली गई गोत्र सूची, रीतिप्रभाकर से उद्धत सूची, तुलाराम की संघ यात्रा की गोत्रसूचीइन तीनों को मिलाकर गोत्र सूची प्रस्तुत की है ।
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