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________________ पातू के श्रेयोऽर्थ वह पुस्तिका लिखवाई थी। पट्टन भं० ग्रन्थ सूची ( गा0 प्रो० सि0 नं0 ७६, पृ० ५०-५१ ) में हमने दर्शाया है। ___ स्वर्गीय लोढाजी ने इस इतिहास में पृ० ६९-७० में इसका परिचय कराया है, वहां आधार.स्थान जै० पु० प्र० सं० ७० पृष्ठ ६८-६९ दिखलाया हैं । पूर्वोक्त पट्टन भण्डार-ग्रन्थ सूची को न देख सके । ___ सुप्रसिद्ध जिन प्रभसूरि ने वि० सं० १३८६ में हम्मीर मोहम्मद ( तुगलक ) के राज्य-काल में योगिनी पत्तन ( दिल्ली ) में कल्पप्रदीप (विविध तीर्थ कल्प) ग्रन्थ की रचना पूर्ण की थी । उसमें प्राकृत नासिक्यपुर कल्प में सूचित किया है कि__"नासिक्यपुर में प्राचीन जैन प्रासाद था, उसको किसी अत्याचारी ने गिरा दिया है, ऐसा सुनकर पल्लीवाल वंश के विभूषण साह ईश्वर के पुत्र माणिक्य के सुपुत्र, नाऊ की कुक्षि रूप सरोवर के राजहस-समान परम श्रावक साह कुमारसिंह ने फिर नया प्रासाद (जैन मन्दिर ) कराया । न्याय से आया हुआ अपना द्रव्य सफल किया, अपने आत्मा को संसार रूप समुद्र से उतारा । इस तरह अनेक उद्धार से सार रूप नासिक्क महातीर्थ का अाराधन आज भो यात्रा महोत्सव करने से चारों दिशाओं से आकर के संघ करते हैं, कलिकाल के गर्व को विनष्ट करने वाले भगवंत के शासन की प्रभावना करते हैं।" विशेष के लिए देखे 'विविध तीर्थ कल्प पृ० ५३-५४, सिंघी जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थ १० तथा हमारा लिखित 'श्रीजिन प्रभसूरि अने सुलतान महम्मद ।' संघवी पाडा पट्टन भंडार की ग्रन्थ सूची पृ० २५५१-२५८ में पल्ली. वाल कुल की ३२ श्लोक वाली ऐतिहासिक प्रशस्ति हमने प्रकाशित कराई है, लेकिन उस समय, वह किस ग्रन्थ के अन्त में है, ज्ञात नहीं था। पीछे गवेषणा से ज्ञात हुआ कि : ( १२ ) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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