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________________ . भावार्थ :-जिसका तेज-स्फुलिंग त्रुटित नहीं हुआ है, ऐसे [हे महाराजा कुमारपाल ! ] अन्य वन्धुनों को छोड़ कर जयश्री के साथ विवाह करने वाले [हे महाराज ] तुम्हारी कीर्ति, असती स्त्रीडुम्बीकी तरह पल्लि देश ( पाली के देश ) में भी क्या भ्रमरण नहीं करती है ? ___ महाराजा कुमारपाल ने अपने बाहु-पराक्रम से रणांगण में शाकंभरी ( सांभर ) के राजा प्रान्न ( अर्णोराज ) पर विजय प्राप्त किया था, इसका इसमें संस्मरण है। __जैसलमेर भण्डार ग्रन्थ सूची ( पृ० ६ गा० प्रो० सिरीझ नं० २१) में हमने दर्शाया है। ___वि० सं० १२१५ की शरद् ऋतु में, इस पल्ली (पाली) में साहार सेठ के स्थान में निवास कर जिनचन्द्रसूरि के शिष्य विजयसिंहसूरि ने उमास्वाति वाचक के जम्बूद्वीप समास की विनेयजनहिता टीका रची थी। [ देखो तत्वार्थ सूत्र का परिशिष्ट, कलकत्ता यावृत्ति ] विक्रम की १२-१५ वीं शताब्दी की पल्लीवाल वंश की प्रशस्तियां आचारांग सूत्र की ताडपत्रीय पुस्तिका, जो •पट्टन (गुजरात) संघवीपाडा के ग्रन्थ-भंडार में विद्यमान है, उसके अन्त में पल्लीवाल वंश की तारीफ इस प्रकार है"उत्त ङ्गः सरलः सुवर्णसचिरः शाखाविशालच्छविः ... सच्छायो गुरु शैल लब्ध निलयः पर्व श्रिया लंकृतः । सद वृतत्वयुतः । सुपत्र गरिमा मुक्ताभिरामः शुचिः पल्लीपाल इति प्रसिद्धमगमद वंशः सुवंशोपमः ॥" ( ७ ) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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