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________________ बजाने वाले थे, समाज देश हित करने वाले, परोपकार परायण विवेकी, धार्मिक अध्यात्मिक प्रवृत्ति करने वाले थे ? महिलाएँ भी कैसी सुशील सच्चरित्र उदार धर्म परायण प्रेरणा - मूर्ति थी ? इसका खयाल इतिहास पढ़ने से हो सकता है । वर्तमान युग का वातावरण कुछ विचित्र है - कई पाश्चात्य संस्कृति मुग्ध राष्ट्रवाद की धुन में जात-पांत का भेद मिटाकर, धर्म धर्म का भी विचार छुड़ाकर, समझ में नहीं प्राता, मानवों को क्या पशु-प्राय बनाना चाहते हैं ? हिंसा को उत्त जन देकर अहिंसा को मिटा देना चाहते हैं ? इस तरह आर्य संस्कृति, सभ्यता, नीति - रीति- प्राचार - विचार को दूर कर नीति, दुराचार, अनार्य संस्कार फैलाना बढ़ाना चाहते हैं । प्राचीन ज्ञाति-समाज संगठन मिटाकर, भिन्न भिन्न वर्णोंजातियों की एकता का विनाश कर विचित्र समाज की रचना का प्रचार, प्रयत्न कर रहे हैं । यह कहां तक ठीक है ? गंभीरता से विचारने योग्य है । ऐसे समय में, ऐसा ज्ञाति धर्म संबद्ध इतिहास कई विरुद्ध विचार मान्यता वाल को पसन्द न भी आवे उसका उपाय नहीं है । जैसे विशाल देश का संरक्षण उन्नति प्रगति योगक्ष ेम भिन्न भिन्न प्रदेश प्रान्त श्रादि की सुचारू व्यवस्था द्वारा होता है, इस तरह मानव समूह का संयम-नियमन, सदाचार- संस्करण, भिन्न भिन्न वर्तुल समुदाय - संगठन द्वारा व्यवस्थित किया जा सकता है । 'समान-शील व्यसनेषु सख्यम्' अर्थात् समान श्राचार-विचार वालों में मैत्री संभवित है | विरुद्ध आचार-विचार वालों में मेल होना मुश्किल हैं। एक अहिंसक हो, और दूसरा हिंसक, एक सात्त्विक आहार करने वाला, और दूसरा मांसाहार आदि प्रभक्ष्य भक्षरण करने वाला, तामसी पदार्थ सेवन करने वाला, दारू आदि अपेय पान करने वाला हो, ऐसे ही एक व्यक्ति धर्मनिष्ठ हो, और दूसरी व्यक्ति धर्म से नफरत करने वाली, ग्रधर्म को ( २ ) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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