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प्रभंजना नी सज्झाम
___ भावार्थ-हमें भी यही उचित है कि.ऐसे निमित का संयोग मिलने पर त्यागमा का आश्रय लें। परन्तु अभी तो चेतन पुद्गलों के भोगों में फंसा हुआ है । ॥१२॥
अवर कन्या पण उच्चरे, चिंतित हिवे कीजे लो। अहोचिं०। पछी परम पद साधवा, उद्यम साधीज लो। अहो उद्यम०१३ ___भावार्थ-इसी बीच दूसरी कन्याओं ने भी प्रभंजना से कहा, अभी तो जिस इच्छित काम के लिये हम जारही हैं, वही कर लीजिये। उचित अवसर आने पर परमपद साधने का उद्यम करेंगी । ॥१३॥ प्रभंजना कहै हे सखि, ए कायर प्राणी लो । अहो ए कायर। धर्म प्रथम करवो सदा, देवचन्द्रनी वाणीलो।अहो देवचन्द्र०१४ ___ भावार्थ-पूर्ण संवेग रग में रंगी हुई प्रभंजना ने कहा, कि हे सखि ! यह तो कायरों का काम है जो भोगों को भोग कर पीछे त्याग करने की सोचता है। मानव को सबसे पहले धर्म करना चाहिये क्योंकि मृत्यु का कोई ठिकाना नहीं है। यह वाणी श्री. देवचन्द्र जी महाराज की है ॥१४॥
ढाल २-दुसरी
हूँ वारी धन्ना तुज्झ जाण न देस" ए देशी . कहै साहुणी सुण कन्यका रे धन्या । ए संसार कलेश । एहने जे हित करी गिणे रे । धन्या । ते मिथ्या आवेश रे।
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