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प्रभंजना नी सज्झाय
कि जो कोई व्यक्ति नीचे तलकुंड में झांकता हुआ ऊपर घूमते हुये चक्र में राधा नाम की पुतली की एक आंख को बाण से वींधेगा, वह इनका पति होगा ॥३॥
कन्या एक हजार थी, प्रभंजना चाली लो । अहो प्रभं०।
आर्यखंड मां आवतां, वनखंड विचाली लो । अहो वन०४। भावार्थ-अब एक हजार कन्याओं के परिवार से प्रभंजना कुमारी चलपड़ी। जहां राधावेव का आयोजन किया हुआ था, वहां आर्य खंड में आते हुये वीच में एक वनखंड अर्थात् बाग आगया......४
निर्ग्रन्थी सुप्रतिष्ठिता, बहु मुणणी संगे लो ।अहो बहु०
साधु विहारे विचरता, वंदे मन रंगे लो। अहो वंदेश भावार्थ-वहां अनेक साध्वियों के साथ साधु धर्म का पालन करती हुई सुप्रतिष्ठिता नामकी साध्वी को देखकर वे कन्याएं बड़े उमंग से उन्हें वंदना करने लगी५॥
आर्या पूछे एवड़ो, उमाहो श्यो छै लो । अहो उमाहो। विनये कन्या वीनवे, वर वरवा इच्छै लो। अहो वर०।६।
भावार्थ-आर्यिका ने उन्हें सहज स्वभाव से पूछा, कि आज तुम्हारे चित्त पर इतनी प्रसन्नता किस बात की है । तब कन्याओं ने विनय के साथ कहा आज हम सभी सहेलियाँ अपने जीवन साथी को वरने के लिए जारही हैं । ६ ए श्यो हित जाणो तुम्हें, एथी नवी सिद्धि लो। अहो एथी। विषय हलाहल विष जिहां, शी अमृत बुद्धि लो । अहो शी०१७॥
भावार्थ-साध्वीजी बोली, बहनों ! इसमें तुमने अपना क्या हित देखा है। इससे कौनसी सिद्धि होने वाली है । जिस में पांचों इन्द्रियों के विषय हलाहल विष है उस वैवाहिक संबंध में अमृत की कल्पना करना नितान्त भ्रम है । ॥७॥
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