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श्री देवचन्द्र जी महाराज कृत प्रभंजना नी सज्झाय
ढाल १-पहली
“नाटकिया नी नंदनी" ए देशी गिरि वैताढ्य ने ऊपरे-चक्रांका नयरी लो। अहो चक्रांका चक्रायुध राजा तिहां-जीत्या सवि वयरी लो-अहोजीत्या॥१॥
भावार्थ-वैताब्य पर्वत के ऊपर चक्रांका नाम की नगरी में सर्वशत्रुओं को जीतनेवाला चक्रायुध नाम का राजा था ......१
मदनलता तसु सुन्दरी-गुण शील अचंभा लो । अहोगुण ।
पुत्री तास प्रभंजना-रूपे रतिरंभा लो । अहो रूपे । २ । भावार्थ-उस राजा के मदनलता नामकी महारानी थी। उसके शील और गुण आश्चर्यकारी थे। उनकी पुत्री का नाम प्रभंजना था। वह रूप और सौन्दर्य में रति अथवा इन्द्राणी के समान थो......२ .
विद्याधर भूचर सुता बहु मिली इक पंते लो । अहो बहु ।
राधावेध मंडावियो-वर वरवा खंते लो ।अहो वर ।६। भावार्थ-प्रभंजना ने अन्य विद्याधरोंएवं राजाओं की एक हजार कन्याओंकेसाथ मिल कर एक ही पति वरने के लिये राधावेध का आयोजन करवाया था। इसका अर्थहै.
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