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.पंच भावना सज्झाय
सम्मुख आंख उठाकर भी नहीं देखते। जब कि मैं इस नट कन्या पर मुग्ध हुआ 'क्यार नहीं कर रहा है, धिक्कार है मेरी वासनावृत्ति को । इन विषय विकारों ने ही तो मुझे नट बनाकर वांस पर चक्कर लगाने को बाध्य किया है। इन विषयों से मेरा क्या संबंध है। ये सारे विषय अनित्य, अशाश्वत और अशुचिमय पौद्गलिक पदार्थ हैं । मैं तो एक, नित्य, अखंड, अजर, अमर, अविनाशी, सिद्ध स्वरूप आत्मा ह। आत्मभावों के सिवाय विभावों का कर्ता तथा भोक्ता मैं नहीं हूं। मैं तो मेरे शुद्धस्वभाव का धनी हूँ । इलापुत्र स्थूल शरीर से तो वांसपर चक्कर लगता। हुआ लोगों को नजर आरहा है और अंतर में अन्यत्व भावना का वेग इतना बढा कि वांस पर ही केवलज्ञान हो गया। फिर वांस से नीचे उतर कर जनता के सामने अपना जीवन वृत्त सुनाने से राजा-रानी और उस नटकन्या ने आत्म ज्ञान पाकर संसार का परित्याग कर दिया। इलापुत्र मुनि की मुक्ति हो चुकी ।
सार--वांस पर खेल दिखलाते२ केवलज्ञान का होना-अन्यत्व-भावना के महान फल का सूचक है।
इति
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