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________________ (१७) अमात्य तेतलीपुत्र ( ढा०५ गा० १६) तेतलीपुर के राजा कनकरथ के अमात्य का नाम तेतलीपुत्र था। इसी शहर के मूषिका दारक सुनार की एक पोट्टिला नाम की कन्या को इसने पसन्द करके अपनी अर्धाङ्गिनी बनाया था। कालांतर से अमात्य तेतली का प्रेम पोट्टिला पर से समाप्त हो गया। उस दिन से वह उदासीन सी रहती हुई दिवान के घर आये हुये श्रमण ब्राह्मणों को दान देती हुई अपना शेष जीवन बिताने लगी । एक दिन गौचरी के लिये आई हुई जैन साध्वी को इसने फिर से पति को प्रिय बनने के लिये कोइ मंत्र बतलाने को कहा। आर्या बोली, यदि तुम चाहो तो हम धर्म का उपदेश दे सकती हैं, किंतु वशीकरणादि मंत्र नहीं बतला सकती। इसने कहा, यह ही सही। तब आर्या ने श्रावकोचित बारह व्रतों का उपदेश देकर संसार की अनित्यता तथा वैषयिक सुखों की क्षणिकता की ओर इसका ध्यान आकृष्ट कर दिआ । इस उपदेश से प्रभावित होकर इसने अमात्य तेतली से साध्वी बनने की आज्ञा मांगी। तेतली बोला-तुम स्वर्ग से आकर मुझे प्रतिबोधित करने का वचन दो तो दीक्षा ले सकती हो। इसने अपना वादा पका करके सुव्रता नामकी गुरुणी के पास दीक्षा लेली । फिर गुरूणी जी की सेवा में रहते हुये इसने ग्यारह अंगों का अध्ययन कर लिया। तथा अंत में अनेक प्रकार की तपस्याओं द्वारा अपने चित्त को विशुद्ध बनाकर, समाधि पूर्वक पंडित मरण करके देवता बन गई। अपने पति को प्रबोध-- फिर अपने पूर्वजन्म के पति अमात्य ते तली को प्रतिबोध देने के लिये ऐसा किया मंत्री जब राजसभा गया, तब राजा कनकध्वज ने इसका किंचित भी सम्मान नहीं किया। इससे वह मन ही मन अनेक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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